औरत, आदमी और छत , भाग 21
भाग,21
सुबह सात बजे थे, मैं उठी ही थी, मिन्नी सब काम निपटा कर नहा रही थी शायद।तभी नीचे से चोकीदार काका आये थे, मिन्नी बेटा,वीरेंद्र बाबू आये हैं।
काका मिन्नी नहा रही है।
ठीक है मैं बोल देता हूँ, वो गाड़ी में ही बैठे हैं।
मैने बाथरूम के गेट पर दस्तक दी थी।
क्या है नीरजा?
मिन्नी बेटा ,वीरेंद्र बाबू आये हैं,बाहर गाड़ी में इंतजार हो रहा है आपका।मैने काका की नकल की थी।
आती हूँ यार ।
जाने क्यों मैने फटाफट चाय रख दी थी।मिन्नी बाहर निकली तो गीले बाल थे। हाथ की पट्टी भी खोल दी थी उसने।
नीरजा मैं निकल रही हूँ, ये मेरी अलमारी की चाबी है कोई विशेष सामान नहीं है, बस दो जोड़ी कपड़े और कुछ किताबें, किसी को कमरे की जरुरत हो तो बेशक रख लेना, पर मैं अभी कमरा छोड़ूगी नहीं, मेरा सामान तुम अपनी अलमारी में रख लेना।
ठीक है मिन्नी, ये लो थोड़ी चाय पी लो।
तुमनें बना भी ली, लाओ यार थेंक्स।
मैं फोन करूंगी नीरजा अपना ख्याल रखना, कन्नु को भी बोलना मैं फोन करूंगी।
ठीक है पर मिन्नी एक बात कहूँ, तुम भी खुश रहा करो,इन उदासियों को अलविदा कह दो यार।
एक फीकी सी मुस्कान फेंक कर मिन्नी चली गई थी।
कैसी हो मिन्नी?
ठीक हूँ, गाड़ी में बैठते हुए मिन्नी ने कहा था।
अभी भी नाराज हो।
किससे?
जाहिर है मुझसे ।
आप से क्या नाराजगी?
हम मियां बीबी है छोटी मोटी नोक झोंक चलती रहती है पर इतना गुस्सा भी तो ठीक नहीं ना।
मुझे ये पता नहीं था न जनाब कि छोटी मोटी नोक झोंक में किसी के खानदान के और अतीत के बखिए भी उधेड़े जाते है।खैर कोई नहीं गर आपके साथ रहना होगा तो ये आदत तो डालनी होगी।
सारी मिन्नी उस दिन नशे में सारी।
सारी की कोई जरूरत नहीं वीरेन, सारी तो एक औपचारिक शब्द है गर आपके दिल में कोई भी अहसास बचा होता तो आप उस दिन नहीं तो मुझे अगले दिन जरूर फोन करते।खैर वीरेन मैने अब इस चीज को अपना नसीब मान लिया है,और हाँ मैने अपनी जॉब भी बदल ली है ,मैं टीचिंग में आ गई हूं,उस स्कूल में टीचर्स के लिए रेजिडेंस भी हैं,गर आपका मुझ से मन भर जाए तो मुझे वापस हास्टल नहीं आना पड़ेगा।मिन्नी के होठोँ पर एक दर्द भरी मुस्कान तैर गई थीऔर उदास आँखें हलकी नम हो गई थी।
कम से कम बोल तो शुभ लिया करो।
ज़िंदगी है वीरेन बाबू , इंसान को हर धूप छाँव, दुख सुख के लिए तैयार रहना चाहिए।
एक झटके से गाड़ी रूक गई थी,उनका घर आ गया था।
घर में आते ही वीरेन्द्र ने उस से फिर सारी बोला था। फीकी सी मुस्कान जबरन ले आई थी होठों पर।
मिन्नी के दिल पर शायद ग हरी ही चोट दे बैठा था।
मिन्नी ने कामवाली बाई को फोन करके बता दिया था कि वो आ चुकी है,उसने भी अभी आई दीदी बोल दिया था।
मुझे लगता है तुम काफी दिन से हास्टल ही हो,शायद जब से मैं गया हूँ तबसे ही।
जी बिलकुल, उसी दिन ,उसी पल से।
बैड की चद्दर बदलते हुए मिन्नी ने कहा था।
माँ से या दीदी से बात हुई थी तुम्हारी?
नहीं मेरी कोई बात नहीं हुई इन हालातों में मुझे खुद बात करना उचित ही नहीं लगा,और उन लोगों का फोन आया ही नहीं।
तुम्हें कर लेना चाहिए था ,गुस्सा तो तुम मुझसे थी।
मिन्नी ने कोई जवाब नहीं दिया था, तभी कामवाली बाई आ गई थी।
नमस्ते दीदी।
नमस्ते कमला आ जाओऔर सुनो जरा सामने स्टोर से ये सामान ले आओ।मिन्नी ने उसे पाँच सौ रूपए का नोट दिया था।
तुमने अभी आफिस जाना है क्या।
जी दस बजे मुझे अखबार के दफ्तर पहुंचना है।अगले महीने से स्कूल।अभी भी स्कूल जाना पड़ जाता है कभी कभी, क्योंकि मैडम ने एक महीने की तनख्वाह की पेनल्टी खुद भरी है।
तुम्हें नौकरी की जरूरत क्या है मिन्नी? छोड़ दो नौकरी और घर सभांलो अपना।
जरूरत क्या कभी पूछ कर या बता कर आती हेऔर फिर नौकरी के साथ घर नहीं सभंलता क्या?
अच्छा बाबा चाय तो पिलवा दो एक कप।
कमला दूध लेने गई है अभी बनाती हूँ।
रीति को मिलने चलें आज, काफी दिन हो ग ए हैं।
अभी चार दिन पहले ही उसका दाखिला करवा कर और उसे हास्टल छोड़ कर आई हूँ।
वो दस दिन मेरे ही पास रूक कर गई है।
यहाँ हास्टल में ही।
जाहिर है,मैं हास्टल में थी तो वो भी वहीं रूकेगी।
उसका दाखिला करवा दिया और मुझसे पूछा तक भी नहीं।
क्या पूछना था आपसे? आप ने भी कोई इस बारे में बात नहीं की तो मैं जबरन क्या पूछती, दाखिले की एक तारीख होती हैऔर उसी के तहत ही दाखिला होता है।
मिन्नी ने वीरेन्द्र को चाय पकड़ा दी थीऔर खुद फटाफट साफ की हुई भिन्डी काट रही थी।
तुम चाय नहीं पीओगी?
मैने सुबह हास्टल में पी ली थी।
तुम और चाय न पीओ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता।ये तो आठवां अजूबा होगा।
वही फीकी सी हंसीं।
मिन्नी ने कपड़े भी धुल लिए थे ,मशीन को अंदर खिसका दिया था उसने।
आप खाना अभी खायेंगे या कुछ देर बाद नहाकर।
मैं नहाकर ही खाऊँगा, तुम हाटकेस में रख देना। मिन्नी ने पराठे, सब्जी और चटनी मेज पर रख दी थी।
आपका टावल और कपड़े बाथरूम में लगा दिए हैं।खाना मेज पर रखा हैऔर मैं निकलती हूँ, पन्द्रह मिनट ही रह गए हैं।
मैं छोड़ आता हूँ।
नहीं मैं चली जाऊंगी।
दीदी मैं जारही हू,मेरा काम भी हो गया है।
ठीक है कमला ।
शाम चार बजे घर पहुंची थी मिन्नी , वीरेंद्र घर पर नहीं था,शायद आफिस गया होगा।
सात बजे तक इंतजार किया फिर वह खुद ही जाकर रसोई का सामान ले आई थी।
खाना बना कर अगले दिन की तैयारी भी हो गई थी ,रात के नौं बज चुके थे। मिन्नी ने अपना लिखना शुरू किया ही था कि साढे नौं बजे वीरेंद्र वापिस आ गया था।वो शराब के नशे में था।
मिन्नी किसी झगड़े को आमत्रंण नहीं देना चाहती थी,इसलिए उसने बहुत ही विनम्रता से कहा था,खाना लगा दूंआपके लिए?
नहीं चाहिए मुझे खाना वाना, किस चीज का घमन्ड है तुम्हें, नौकरी का, हो क्या तुम?
आप प्लीज चुप है जाएं वीरेन, कोई सुनेगा तो क्या कहेगा?
सुनना कहती हो लोग देखेंगे भी,कहेंगे वीरेंद्र चार महीने पहले शादी हुई और चार साल की बच्ची, हाँ हाँ हाँ वाह भ ई वीरेंद्र सिहँ वाह।
मिन्नी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी,पर इस वक्त कुछ भी कहना एक तमाशे को आमत्रंण देना था।वह बिलकुल चुप रही, सोच रही थी गर इतनी ही पी रखी होती तो ये गाड़ी चला कर कैसे लाते, ये तो सिर्फ और सिर्फ उसे ज़लील करने का एक तरीका ढूढ़ा है वीरेंद्र ने ,जिसे नशे का जामा पहना दिया है। वीरेंद्र सो चुका था,खाना बना रखा था, किसी ने चखा भी नहीं था।मिन्नी ने बहुत कुछ बदलते देखा था,पर किसी इंसान के किरदार को इतनी जल्दी बदलते नहीं देखा था। या फिर वो वीरेंद्र के उस नकली किरदार से इतना जुड़ गई थी कि उसे ये असली किरदार बहुत ही अलग और कोई गैर सा दिख रहा था। वीरेंद्र सो चुका था मिन्नी की आँखों के आसपास कहीं भी नींद नहीं थी। वीरेंद्र के सोने के बाद उसने बेजान पैरों से हल्के से घिसट कर लाईट बंद कर दी थी। वो कुर्सी पर बैठी अन्धे रे के आर पार न जाने क्या झाँकने की कोशिश कर रही थी,पर कुछ नज़र ही नहीं आ रहा था,रोने को दिल कर रहा था फूट फूट कर,पर रोने से डर लग रहा था,खामख्वाह तमाशा बन जायेगा, लोग क्या कहेंगे।
वीरेंद्र को अच्छी तरह से मालूम था कि मेरी एक बेटी भी हैऔर शादी भी वीरेंद्र के जोर देने पर हुई है, मैंने तो शादी होने के बाद भी ये सब किसी को नहीं बताया, फिर भी मैं ही कसूरवार।
खुद से सवाल जवाब करते प्रभात के चार बज गए थे, विचारों के चक्रव्यूह में फसी मिन्नी अपने आप को जैसे अनेकों फंदों मे लिपटी महसूस कर रही थी, उसे पता ही नहीं चला कब कुर्सी पर बैठे बैठे वो नींद के आगोश में समा गई थी।सुबह के छहः बजने वाले थे, वीरेंद्र को शायद पानी की प्यास ने जगाया था।कुर्सी पर सोई मिन्नी को देखकर शायद उसे रात का घटना क्रम याद आ गया था।पानी पीने के बाद उसनें मिन्नी को कुर्सी से उठा कर अपने आगोश में ले लिया था। अपनी शारीरिक तृष्णा मिटा कर उसने, सारी डियर, बोल दिया था।
सुबह साढे सात बजे तक मिन्नी से बिस्तर नहीं छोड़ा गया था।तभी जोरदार घंटी की आवाज़ ने उसे उठा दिया था।बाहर जाकर देखा तो वीरेंद्र की माताजी दरवाजे पर थी,उन्हेंआभिवादन करके वो अंदर ले आई थी।
आज इतनी देर तक कैसे बेटी तूं तो बहुत जल्दी उठती है,तबियत तो ठीक है तेरी।
जी मंमी बिलकुल ठीक हूँ, उसने उनसें नजरें छिपाते हुए कहा था।वीरेंद्र भी माँ की आवाज़ से उठ गया था।
मिन्नी ने चाय चढ़ाकर ब्रश कर लिया था।माँ और वीरेंद्र को चाय देकर वो वापिस रसोई में आ गई थी।
मिन्नी तूं भी अंदर आजा , तेरी चाय कहाँ है।
मैं रसोई में काम कर रही हूँ मंमी, आप पीजिए मैं यहीं पी लूंगी।
चाय पीते पीते जाने क्या यादकर उसकी आँखें भर आई थी।जाने क्यों फफक कर रो पड़ी थी वो। सब्जी काटते हुए शायद जी भर कर रो चुकी थी वो उसने देखा ही नहीं कबसे उसकी सास दरवाजे पर खड़ी ये सब देख रही हैं।
क्या हुआ मिन्नी क्यों रो रही है किसी ने कुछ कहा है।
नहीं नहीं मंमी किसी ने कुछ नहीं कहा। वोतो बस प्याज काटते हुए आँखों में पानी आ गया।
प्याज तो तुमने काटे भी नहीं है बेटी।
तभी बाहर से किसी की आवाज आई थी, ताई पहुंच ग ई क्या।
हाँ बेटा आजा पहुंच गई मैं।
वीरेंद्र का चचेरा भाई था शायद।चाय बना ले बेटी
तेरा जेठ आया है।
मिन्नी ने चाय बना कर वीरेंद्र के मोबाईल पर मिसकॉल दे दी थी।
वो चाय लेने रसोई तक आ गया था।
बहुत तैश भरे तेवर थे उसके, बोला कसर रह गई हो तो और रो लो थोड़ा सा, चुप क्यों हो गई।
तभी कमला भी आ गई थी.मिन्नी ने कमला के हाथ ही खाना भिजवा दिया था, क्योंकि वीरेंद्र के घर में जेठ से परदा होता था।उन की बातें जो बाहरतक आ रही थी उन से लग रहा था कि सासू माँ और वीरेंद्र का चचेरा भाई उसके जेठ के यहाँ जायेंगे जो इसी शहर में रहते हैं।वीरेंद्र भी तैयार हो चुके थे,वो कह रहे थे,मैं छोड़ दूंगा आप लोगों को।
तभी मिन्नी की सास रसोई में आई थी,तू डयूटी पर कब जायेगी बेटी।
बस अभी जाऊँगी माँ।
मिन्नी ने अपने हाथों से कड़े और चैन उतार कर वीरेंद्र की माँ को दे दी थी। ये आप ले जाना माँ,मेरे से कहीं गुम न हो जायें,जरूरत हुई तो फिर ले लूंगी आपसे।
अरी क्या बात करती हो अब न हीं पहनोगी तो कब पहनोगी, और कहीं गुम नहीं होते।
नहीं मंमी अभी ले जाईये आप फिर ले लूंगी मैं।
तभी शायद वीरेंद्र माँ को बुलाते हुए अंदर आ गए
थे।जल्दी कर माँ,बाहर गाड़ी स्टार्ट खड़ी है।
तूने मिंन्नी को कुछ कहा है रे।
मैं क्या कहूँगा इस को।
पता नही भाई, आज इसने मेरे साथ चाय भी नहीं पी,ओर अब ये चैन और कड़े वापिस दे रही है ,कहती है मुझसे गुम हो जायेंगे।
तो ले लो नहीं पहनने होंगे, इसको न पहने ,अब जल्दी कर माँ वरना शिवजीत अंदर जायेगा कि क्या हो गया।
वीरेंद्र माँ को लेकर उससे बिना कुछ बोले चले गए थे।
मिन्नी रसोई समेट कर बिना नहाये अपने आफिस जाकर वहाँ से सीधी वापिस घर आ गई थी,एक बार तो उसका मन किया था ,सब कुछ छोड़कर हास्टल शिफ्ट हो जाये।पर उसे लगा कि ये गलती तो वीरेंद्र के साथ शादी से भी बड़ी गलती होगी।लोग कहेंगे कि इसे ही निभाना नहीं आता और अब तो सब जान चुके हैं कि उसनें शादी कर ली है।
घर आकर वो नहाई थी,उसके बाद उसनें खाना खाया था, कल सुबह से कुछ नहीं खाया था।पर किसी को परवाह ही नहीं थी, परवाह भी कौन करता , वीरेंद्र को तो उस पर इल्ज़ाम लगाने से ही फुर्सत नहीं थी।उसनें बची हुई दोनों रोटी खा ली थीऔर एक नींद की गोली खाकर और अपना फोन बंद करके वो सो गई थी।नींद बहुत देर से आई थी,पर आ गई थी।
शाम के छहः बजे के करीब नींद खुली थी उठकर हाथ मुहँ धोकर चाय बनाई थीऔर फोन खोला था,अभी चाय पीनी शुरू ही की थी कि वीरेंद्र का फोन आ गया, कहाँ हो मैडम?
घर पर।
फोन क्यों बंद किया हुआ है।
सोना था इसलिए बंद कर लिया।
बता नहीं सकती थी कि घर पर हूँ और सो रही हूँ।
मुझे लगा अब किसी को ये जानने की जरूरत ही नहीं रही कि मैं कहाँ हूँ और क्यों हूँ।
वीरेंद्र ने फोन काट दिया था।
तभी उस का मोबाईल बजा था, ये कन्नु थी।
मिन्नी मोबाईल क्यों आफ था।
तबियत ठीक नहीं थी तो बंद करके सो गई थी।कैसी हो।
मै ठीक हूँ, मुझे क्या होना है।एक खुशखबरी बताऊँ।
बोलो ना।
नीरजा की शादी पक्की हो गई है, बहुत ही कम समय के अतंराल में,उसने तुम्हें फोन भी किया था,पर वो बंद था।अगले सप्ताह शादी है उसकी।
अच्छा।
तुम चलोगी नहीं।
देखती हूँ कन्नु।
क्या हुआ मिन्नी तुम कुछ ठीक नहीं लग रही हो।
हम्म शायद मैं ठीक नहीं हूँ कन्नु।
क्या हुआ बता ,ना।
बताने जैसा अभी कुछ नहीं है डियर, क्योंकि अभी त मुझे भी पता नहीं है कि क्या और क्यों है। हाँ कल तेरी छुट्टी है ना,तो बाजार में मिलते हैं।नीरजा के लिए गिफ्ट ले लेंगे।
इसका मतलब तूं चल रही है ना।
मैं न भी जा पाईतो तूं तो जायेगी ना।
मिन्नी????
कल मिलते हैं, मैं फोन करती हूँ तुझे।
आज मिन्नी ने खाना नहीं बनाया था, बस वो बैठ कर लिखती ही रही थी। आठ बजे के करीब मुख्यदरवाजे पर गाड़ी रूकने की आवाज़ ने वीरेंद्र के आगमन की सूचना दे दी थी।
वो अंदर आ गया था, मिन्नी अपने कागच समेटने लगी थी।
खाना खाओगे।
हाँ खाना तो खाऊँगा ही।
वो रसोई की तरफ मुड़ने लगी थी कि उसनें पीछे से खीच लिया था,कहाँ जा रही हो।
खाना बनाने।
मेरे पास भी बैठ जाओ, मैं कोई भूत नहीं जो तुम्हें खा जाऊँगा।
आप भूत तो नहीं पर वो इंसान भी नहीं जिसे मैं एक अरसे से जानती थी।आपने कभी भी नहीं जताया कि आप रोज शराब पीते हैं पीना ही नहीं पीने के बाद खुद पर काबू भी नहीं रख पाते हैं।क्या पता नहीं था आपको मेरे बारे में जो मुझे रोज ताने सुनाते हैं। गर आपको ये चीजें इतना ही अखर रही हैं अब , तो अब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा,रोज रोज की चिक चिक से जरूर छुट्टी मिल जायेगी।
बकवास बंद करो। क्या जरूरत थी माँ को सामान वापिस करने कीऔर उन के सामने रोने की।
मैं उन के सामने रोने नहीं गई पता नहीं वो हि कब रसोई में आ गई।और हाँ जब रोने का मन करेगा तो इंसान रोयेगा भी या इस में भी आपकी सहमति की जरूरत होगी।
रही बात उस सामान की तो मैं ऐसी कोई भी चीज नहीं रखना चाहती जिस के लिए मुझे तानें सुनने पड़े।
यानि मैं तुम्हें ताने मारता हूँ।
आप बेहतर जानते ह़ै।मेरे बताने की जरूरत नहीं है।
मिन्नी ने अगले दिन जाकर नीरजा के लिए साड़ी खरीदी थी कन्नु ने भी नीरजा के लिए गिफ्ट खरीदा था।
तुम खुश नहीं हो न मिन्नी।
खुशी शायद मेरे नसीब में ही नहीं है कन्नु।
पर वीरेंद्र भाई तो तुझसे बहुत प्यार करते थे ना।
खैर छोड़ कन्नु ये गिफ्ट्स तूं ही ले जा गर मैं ना भी जा पाई तो ये तो पहुंच जायेगा ना।
बिल्कुल भी नहीं मैं कुछ नहीं लेकर जारही और तुम्हें चलना भी पड़ेगा।
तुम भी न कभी बच्ची बन जाती हो कन्नु।
मिन्नी के फोन पर घंटी जा रही थी।
जी ।
मृणाली मैम?
जी मृणाली बोल रही हूँ।
मैम आपने इसी महीने सैंट जेवियस स्कूल जॉइन किया है,आप का रेजिडेंस वाले कालम खाली है कृपया मुझे बतायें कि आपको स्कूल की तरफ से आवास चाहिए या नहीं, यदि चाहिए तो आप अपने परिवार के सदस्यों की संख्या से मुझे अवगत करायें।
मैम मैं अभी रास्ते में हूँ, क्या मैं घर पहुंच कर आपको फोन कर सकती हूँ।ये आपका ही नम्बर है क्या?
जी मृणाली मैं आस्था और ये मेरा ही नम्बर है।
जी आस्था मैं आपको फोन करती हूँ।
आटो से उतर कर मिन्नी ने वीरेंद्र को फोन किया, आप फ्री हैं दो मिनिट केलिए ,आपसे जरूरी बात करनी है।
हाँ बोलो क्या बात है?
दरअसल मुझे स्कूल से फोन आया है वो लोग रेजिडेंस के बारे में पूछ रहे हैं मैने उनसें समय लिया है कुछ देर का तो मैं आपसे ये कहना चाहती थी की आप को मेरे और अपने रिश्ते के बारे में एकबार फिर सोच ले, ताकि ये हमारे लिए तमाम उम्र का आज़ाब न बन जाये। आपका कोई भी फेंसला ले सकते हैं,पर प्लीज मुझे हर वक्त के ताने नहीं सुनने किसी भी बात को लेकर।
ये भाषण बाजी बंद करो और मना कर दो उन को रेजिडेंस के लिए।
मेरा मतलब है कि अभी भी हमारे
मैने बोला ना यार क्यों दिमाग खराब कर रही हो, नशे में कुछ बोला गया तो उसके बदले में जान लोगी मेरी।
मिन्नी ने फोन काट दिया था बिना कुछ बोले।
वो चुपचाप ताला खोल कर अंदर आ गई थी। किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था उसके पास।किसी समस्या का कोई समाधान नहीं था उसके पास,उसे लग रहा था कि वो खुद एक समस्या ही बन गई है।काशः वक्त थोड़ा पीछे चला जाता तो अपनी इस भूल को बदल सकती।
क्रमशः
कहानी,औरत आदमी और छत।।
लेखिका ललिता विम्मी।
, भिवानी, हरियाणा